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धरती पर पांडवों को धर्म का प्रतीक माना जाता है। पांडवों ने अनेक कष्टों को सहन किया, इसके बावजूद धर्म के मार्ग से कभी नहीं हटे। अपने बुजुर्गों को दिए गए वचनों का उन्होंने ताउम्र पालन किया। विपत्तियों में तपकर कुंदन बने और घर, परिवार तथा समाज से ऊपर उठकर धर्म की रक्षा की। सभी पांडव धरती पर देवत्व का अंश लेकर अवतरित हुए थे, इसलिए उनके कर्मों में सदगुणों का वास था। अब बात करते हैं पांडवों के जन्म की। सबसे पहले धर्मराज युधिष्ठिर, जो धरती पर धर्म के अंश थे और धर्म की रक्षा का परचम भी उन्होंने थाम रखा था । भीमसेन वायु के अंश थे और उनके बल के चर्चे ब्रह्मांड के कोने-कोने में थे। अर्जुन स्वर्गाधिपति इंद्र के अंश थे। इसलिए अर्जुन पर इंद्र की खास कृपादृष्टी बनी हुई थी। महाभारत में लिखा है कि नकुल और सहदेव आश्विनीकुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे। अर्जुन पुत्र अभिमन्यू चंद्रमा के अंश रूप में अवतरित हुए थे। चंद्रमा ने एक बार तो अपने पुत्र वर्चा यानी अभिमन्यु को धरती पर भेजने से मना कर दिया था और कहा था कि मैं अपने प्राणप्रिय पुत्र को धरती पर भेजना नहीं चाहता हूं, परन्तु इस कार्य से पीछे हटना उचित जान नहीं पड़ता इसलिए वर्चा मनुष्य बनेगा तो सही, लेकिन धरती पर ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगा। उस वक्त चंद्रमा ने कहा था कि इंद्र के अंश से नरावतार अर्जुन होगा, जो नारायणवतार श्रीकृष्ण से मित्रता करेगा और मेरा पुत्र अर्जुन का ही पुत्र होगा। नर-नारायण के न रहने से युद्ध में यह चक्रव्यूह का भेदन करेगा और बड़े-बड़े महारथियों से युद्ध करने के बाद सायंकाल को आकर मुझसे मिलेगा। इसकी पत्नी से जो पुत्र होगा वही कुरुकुल का वंशधर होगा। सभी देवताओं ने चंद्रमा के वचनों का अनुमोदन किया। धृष्टद्युम्न अग्नि के अंशावतार थे तो एक राक्षस के अंश से शिखण्डी का जन्म हुआ था। विश्वदेवगण द्रौपदी के पांचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानिक और श्रुतसेन के रूप में पैदा हुए थे। देवादिदेव सनातन पुरुष भगवान नारायण के अंश से श्रीकृष्ण अवतीर्ण हुए। इंद्र की आज्ञानुसार, अप्सराओं के अंश से सोलह हजार स्त्रियां उत्पन्न हुई थी। राजा भीष्म की पुत्री रुक्मणी के रूप में लक्ष्मीजी और द्रुपद के यहां यज्ञकुण्ड से द्रौपदी के रूप में इन्द्राणी उत्पन्न हुई थी। कुन्ती और माद्री के रूप में सिद्धी और धृतिका का जन्म हुआ था। मतिका का जन्म राजा सुबल की पुत्री गांधारी के रूप में हुआ था।
16 Apr, 2018
आगे पढ़ऐभगवान परशुराम का विष्णु का छठा अवतार माना गया है। उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था। पौराणिक वृत्तांतों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा संपन्ना पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्ना देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाष शुक्ल तृतीया को हुआ था। उन्हें विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है क्योंकि भारतीय पौराणिकता में परशुराम क्रोध के पर्याय रहे हैं। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध स्वरूप इन्हें हैहय वंशी क्षत्रियों के साथ 21 बार युद्ध किया और उनका समूल नाश किया। अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये इन्होंने अपनी माता सहित अपने सभी भाइयों का सिर काट दिया। उन्हें पुनर्जीवित करने का वरदान भी बाद में उन्होंने अपने पिता जमदग्नि से मांगा। इन्हीं परशुराम को भगवान विष्णु के दसवें अवतार जो कि कल्कि के रूप में अवतरित होंगे का गुरु भी माना जाता है। परशुराम का उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक मिलता है। कैसे हुआ था परशुराम का जन्म कन्नौज में गाधि नाम के राजा राज्य किया करते थे। उनकी कन्या रूपगुण से संपन्ना थी जिसका नाम था सत्यवती। विवाह योग्य होने पर सत्यवती का विवाह भृगु ऋषि के पुत्र ऋचीक के साथ हुआ। विवाहोपरांत जब ऋषि भृगु ने अपनी पुत्रवधु को वरदान मांगने के लिए कहा तो सत्यवती ने अपनी माता के लिए पुत्र की कामना की। भृगु ऋषि ने दो चरु पात्र देते हुए कहा कि इन दोनों पात्रों में से एक तुम्हारे लिए है और दूसरा तुम्हारी माता के लिए जब तुम दोनों ऋतु स्नान कर लो तो पुत्र इच्छा लेकर पीपल के वृक्ष से तुम्हारी मां आलिंगन करें और तुम गूलर के वृक्ष से। तत्पश्चात अपने-अपने चरु पात्र का सावधानी से सेवन करना। तुम्हारी कामना पूर्ण होगी। सत्यवती की मां को जब पता चला कि उत्तम संतान प्राप्ति के लिए भृगु ने सत्यवती को चरु पात्र दिए हैं तो उसके मन में पाप आ गया और उसने सत्यवती के पात्र से अपना पात्र बदल दिया। समय आने पर दोनों ने उनका सेवन भी कर लिया लेकिन सेवन करते ही अपनी योगमाया से भृगु सारा मामला जान गये। इसमें सत्यवती का कोई दोष नहीं था उन्होंने सत्यवती से कहा कि हे पुत्री तुम्हारी माता ने तुमसे छल कर तुम्हारे चरु पात्र का सेवन कर लिया तुम्हारी माता वाले पात्र को तुमने ग्रहण किया। अब तुम्हारी संतान जन्म से भले ब्राह्मण हो लेकिन उसका आचरण एक क्षत्रिय जैसा होगा। वहीं तुम्हारी माता की संतान क्षत्रिय होने के पश्चात भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी। इस पर सत्यवती ने प्रार्थना करते हुए कहा कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र एक ब्राह्मण की तरह ही व्यवहार करे भले ही मेरे पौत्र में क्षत्रिय के गुण आ जायें। महर्षि भृगु ने सत्यवती की विनती स्वीकार की और सत्यवती की कोख से जन्मे सप्त ऋषियों में स्थान पाने वाले महर्षि जमदग्नि। जमदग्नि की पत्नी बनी प्रसेनजित की कन्या रेणुका। रेणुका व जमदग्नि के पांच पुत्र हुए इनमें पांचवे पुत्र थे भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम। क्यों हुआ परशुराम का जन्म वैसे तो भगवान विष्णु ने जब भी अवतार लिया है उसका उद्देश्य केवल धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश माना जाता है। लेकिन परशुराम जो कि विष्णु के अवतारों की श्रृंखला में छठे व स्वभाव में आवेशावतार माने जाते हैं भगवान विष्णु के सातवें श्री राम व आठवें श्री कृष्णावतार के समय तक उपस्थित माने जाते हैं। इतना ही नहीं इनकी गिनती तो महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन आठ अमर किरदारों में होती है जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है। कई संदर्भों में तो भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के रूप में स्वयं भगवान परशुराम के पुन: अवतरित होने की मान्यताएं प्रचलित हैं। दरअसल भगवान परशुराम श्री हरि यानि विष्णु ही नहीं बल्कि भगवान शिव और विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। शिव से उन्होंने संहार लिया और विष्णु से उन्होंने पालक के गुण प्राप्त किए। तत्कालीन क्षत्रिया राजा जो अपनी सत्ता व शक्ति के नशे में धर्म-कर्म भूल चूके थे और ऋषि मुनियों सहित पूरी मानवता के लिये खतरा पैदा हो गया था उन कार्तवीर्यार्जुन, सहस्त्रबाहु या कहें सहस्त्रार्जुन जैसे मदांध को सबक सिखाने के लिये ही परशुराम अवतरित हुए थे।
16 Apr, 2018
आगे पढ़ऐयदि किसी व्यक्ति को घर-परिवार या समाज में बार—बार अपमानित होना पड़ रहा है तो इसके पीछे ज्योतिषीय दोष भी हो सकते हैं। कुंडली में सूर्य के कमजोर होने की वजह से व्यक्ति को अपमान का सामना करना पड़ता है। सूर्य के दोष दूर करने के लिए रविवार को विशेष उपाय किए जाते हैं, क्योंकि रविवार का कारक सूर्य ही है। तो आइये जानते हैं वे कौनसे उपाय हैं— पहला उपाय: सूर्योदय से पहले उठें। सूर्योदय के बाद उठने वाले लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर होता है। रविवार से शुरू करके रोज सुबह जल्दी उठें। दूसरा उपाय: जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्योदय के समय सूर्य को तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और सूर्य मंत्र ऊँ भास्कराय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। तीसरा उपाय: सूर्यास्त के समय सोने से बचें। इस समय सोने से आलस्य बढ़ता है सूर्य अशुभ होता है। सूर्य अशुभ होने से घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान नहीं मिल पाता है। चौथा उपाय: रविवार को गुड़ का दान करें। इस उपाय से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और मान-सम्मान में वृद्धि होती है। पांचवां उपाय: ध्यान रखें कभी भी घर के बड़ों का अपमान न करें। जो लोग बड़ों का अपमान करते हैं उन्हें कभी भी सम्मान नहीं मिल पाता है। इन सभी उपायों के साथ कुंडली के अन्य ग्रह दोषों के भी उपाय करना चाहिए। जब सभी ग्रह दोषों के उपाय किए जाएंगे तो जल्दी ही शुभ फल मिल सकते हैं।
16 Apr, 2018
आगे पढ़ऐकहा जाता है कि सोना मिले या सोना गुम हो जाए दोनों ही परिस्थिति में अशुभ माना जाता है। सोना खोने पर गुरु के अशुभ प्रभावों का सामना करना पड़ता है। गुरु के नाराज हो जाने यानी रुठ जाने पर परिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है। साथ ही दांपत्य सुख में भी कमी आती है। वहीं अगर किसी को सोना मिलता है तो वह जब तक घर में रखा होता है। तब तक परिवार का कोई न कोई सदस्य बीमार रहता है या घर में हमेशा कलह बनी रहती है। यदि किसी को सोना मिलता है तो उस सोने को बेचकर उसका कुछ भाग दान कर देने से उसका अशुभ प्रभाव खत्म हो जाता है। अगर घर में किसी महिला या बच्चे से सोना गुम हो जाता है तो इसे अशुभ संकेत माना जाता है कहा जाता है कि सोना गुम होने पर घर में कलह होता है और दांपत्य जीवन में कड़वाहट आने लगती है।
05 Apr, 2018
आगे पढ़ऐधार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार किसी भी तरह का आभूषण खोना दुर्भाग्य लाता है। इसके एक नहीं कई प्रमाण हैं। आइए जानें किस आभूषण के खोने से क्या नुकसान होने की आशंका हो सकती है। शास्त्रों में कहा गया है कि नाक का आभूषण खो जाने का अर्थ है भविष्य में बदनामी अथवा अपमान होगा। अगर सिर का कोई गहना खो जाए तो आने वाले समय में टेंशन-परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। कानों में डालने वाला कोई गहना गुम हो जाए तो किसी बुरे और दुखद समाचार प्राप्त होता है। गले का हार गुम हो जाए तो वैभव में कमी आती है। बाजू बंद के गुमने से आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कंगन का खोना प्रतिष्ठा में कमी लाता है। अंगूठी के गुमने से सेहत संबंधित परेशानियां होती हैं। दाएं पैर की पायल गुमने से समाज में बदनामी सहनी पड़ती है। बाएं पैर की पायल गुमना ऐक्सीडेंट अथवा महाविपदा का संकेत है। बिछुआ गुम हो जाए तो पति की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
05 Apr, 2018
आगे पढ़ऐनई दिल्ली। झारखंड के धनबाद जिले का एक गांव आज भी लोगों के लिए सद्भावना की मिसाल बना हुआ है। जी हां, हम बात कर रहे हैं झारखंड के धनबाद जिले के करीब बसे गांव झरिया बस्ती की। इस गांव के करीब चालीस मुस्लिम परिवार गत चार दशकों से मंदिर में चढ़ाए जाने वाली फूलों की माला बनाने के लिए फूलों की खेती करते हैं। गांव के किसान ने बताया कि वे फूल और माला की सप्लाई झरिया बस्ती में करते हैं। फूलों को मंदिर में ले जाने के सवाल पर उन्होंने कहा, माला 5 रुपए की एक बेची जाती है। त्यौहारों के सीज़न में फूलों की मांग के मुताबिक वे मंदिर में फूल भेजने की जिम्मेदारी में हिस्सेदार बनते हैं। झरिया के काली माता मंदिर के पुजारी दयाशंकर दूबे ने कहा, गांव के लोग मंदिर में ज़रूरत के वक़्त हमेशा समय पर फूल भेजते हैं।
04 Apr, 2018
आगे पढ़ऐधार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य को देवों की श्रेणी में रखा गया है। उन्हें भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देने वाला भी कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सूर्य का विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्रों में कहा गया है कि हमें हर रोज प्रातकाल: सूर्य को जल चढाना चाहिए। हम सभी यह करते हैं। क्या हैं सूर्य को जल चढाने की वैज्ञानिक मान्यता, क्यों चढाते हैं सूर्य को जल, आखिर सूर्य को जल चढाने के क्या फायदे होते है, वो बताते है। सूर्य को ऐसे चढाए जल: भारतीय परंपरा के अनुसार सूर्य देव को प्रात:काल नहाने के बाद जल अर्पण करना चाहिए। जल चढाने के लिए तांबे के कलश का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। साथ ही जल में लाल सिंदूर व लाल फूल डालकर भी अर्पण करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य देव की कृपा हमेशा बनी रहती है। क्या कहती हैं मान्यताएं: धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो सूर्य देव को आत्मा का कारक माना गया है। इसलिए प्रात:काल सूर्य देव के दर्शन से मन को बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। साथ ही ये शरीर में ताजगी भी लाता है। भाग्य दोष होते हैं दूर: प्रत्येक सुबह सूर्य को जल चढाने से भाग्य अच्छा होता है। सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते है। हर कोई आपसे खुश रहता है और आपके लिए निष्ठावान रहता है। वहीं ज्योतिशास्त्र के मुताबिक सूर्य ही वह ग्रह है जो व्यक्ति को सम्मान दिलाता है। नियमित रूप से सूर्य देव को जल चढाने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है। उसे लोगों से सहयोग मिलता है व उच्च पद पर विराजित होने का भी सम्मान मिलता है। ऐसे लोग समाज में प्रतिष्ठा हासिल करते हैं। हर अंग पर पडता है प्रभाव: इंसान का शरीर पंच तत्वों से बना होता है। इनमें एक तत्व अग्नि भी है। सूर्य को अग्नि का कारक माना गया है। इसलिए सुबह सूर्य को जल चढाने से उसकी किरणें पूरे शरीर पडती है। जिससे हार्ट, त्वचा, आंखे, लीवर और दिमाग जैसे सभी अंग सक्रिय हो जाते हैं। नींद न आने की समस्या को करता है दूर: रोज सुबह जल्दी उठने और रात को जल्दी सोने की प्रक्रिया से शरीर का संतुलन बना रहता है। इससे थकान, नींद न आने व सिर में दर्द जैसी समस्याओं को दूर करता है। ये दिमाग को सक्रिय बनाता है। सूर्य पर जल चढाने का वैज्ञानिक तर्क: सुबह के समय सूर्यदेव को जल चढाते समय शरीर पर पडने वाले प्रकाश से ये रंग संतुलित हो जाते हैं। जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ जाती है। इसके आलावा सूर्य नमस्कार की योगमुद्रा होने से एकाग्रता बढती है। मेरुदंड (रीढ की हड्डी) की कई बीमारी सही होती हैं। आंखों की कई समस्या दूर होती हैं। सूर्य की रौशनी से मिलने वाला विटामिन डी शरीर में पूरा होता है। आपका मुखमंडल ओजस्वी होता है त्वचा के रोग कम होते हैं। प्राकृतिक संतुलन भी बनता है। इन्ही कारणों से हम सूर्य देव का जल चढ़ाकर अभिनंदन करते हैं, और वह हमें आशीर्वाद देते हैं।
01 Apr, 2018
आगे पढ़ऐहिंदू धर्म में हर महीने का विशेष महत्व है। स्कंद पुराण में वैशाख मास को सभी मासों में उत्तम बताया गया है। वैशाख मास के देवता भगवान मधुसूदन हैं। पुराणों में कहा गया है कि वैशाख मास में सूर्योदय से पहले जो व्यक्ति स्नान करता है तथा व्रत रखता है, वह भगवान विष्णु को विशेष प्रिय होता है। इस बार वैशाख मास का प्रारंभ 1 अप्रैल, रविवार से हो रहा है, जो 30 अप्रैल, सोमवार तक रहेगा। वैशाख मास का महत्व स्कंद पुराण के अनुसार, महीरथ नामक राजा ने केवल वैशाख स्नान से ही वैकुण्ठधाम प्राप्त किया था। इसमें व्रती (व्रत रखने वाला) को प्रतिदिन सुबह सूर्योदय से पूर्व किसी तीर्थस्थान, सरोवर, नदी या कुएं पर जाकर स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य देते समय नीचे लिखा मंत्र बोलना चाहिए- वैशाखे मेषगे भानौ प्रात: स्नानपरायण:। अर्ध्य तेहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।। वैशाख मास में रखें इन बातों का ध्यान 1. वैशाख व्रत महात्म्य की कथा सुननी चाहिए तथा ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। 2. व्रती (व्रत करने वाला) को एक समय भोजन करना चाहिए। 3. वैशाख मास में जलदान का विशेष महत्व है। इस महीने में प्याऊ की स्थापना करवानी चाहिए। 4. पंखा, खरबूजा एवं अन्य फल, अनाज आदि का दान करना चाहिए। 5. स्कंद पुराण के अनुसार, इस महीेने में तेल लगाना, दिन में सोना, कांसे के बर्तन में भोजन करना, दो बार भोजन करना, रात में खाना आदि वर्जित माना गया है। वैशाख महीने में इस मंत्र से करें भगवान विष्णु की पूजा धर्म ग्रंथों के अनुसार, सूर्यदेव के मेष राशि में आने पर भगवान मधुसूदन के निमित्त वैशाख मास स्नान का व्रत लेना चाहिए। स्नान के बाद भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान मधुसूदन से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए- मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ। प्रात:स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव।। हे मधुसूदन। मैं मेष राशि में सूर्य के स्थित होने पर वैशाख मास में प्रात:स्नान करुंगा, आप इसे निर्विघ्न पूर्ण कीजिए। इसके बाद इस मंत्र से अर्घ्य दें- वैशाखे मेषगे भानौ प्रात:स्नानपरायण:। अर्ध्य तेहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।।
01 Apr, 2018
आगे पढ़ऐआज के समय में कोई सोच भी नहीं सकता कि मैनेजमेंट संस्थान हनुमान जी के फार्मूले का प्रयोग कर रहे हैं। उन्हें ही देख कर शॉर्ट टर्म और लांग टर्म पॉलिसी तैयार की जा रही है। उनकी लाइफ स्टाइल में इतने फंडे हैं कि मैनेजमेंट एक्सपर्ट उनसे आइडिया लेकर बिजनेस ग्रोथ बढ़ा रहे हैं। बिजनेस मैनेजमेंट से लेकर लाइफ मैनेजमेंट तक सभी में हनुमान जी की पॉलिसी को अपनाया जा रहा है। जिस तरह से उन्होंने फंडा लगाया है, उसे समझा और उपयोग भी किया जा रहा है। इसमें सबसे बड़ा फंडा क्राइसेस मैनेजमेंट का है। इन्हीं कारणों से मैनेजमेंट एक्सपर्ट भी हनुमान जी को गुरु मानते हैं।
01 Apr, 2018
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