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झाबुआ। मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पास होली पर कुछ अजीब रस्में निभाई जाती हैं। इसमें एक रस्म में करीब 30 फीट ऊंचे गल (लकड़ी की चौकी पर) पर कमर के बल झूलते हुए देवता के नाम के नारे लगाए जाते हैं तो एक ओर दहकते अंगारों पर चलकर श्रद्धालुओं ने अपनी मन्नत उतारते हैं। इस कार्यक्रम में आसपास के जिलों से भी लोग शाामिल होते हैंए। धुलेंडी पर बिलीडोज गांव में गल पर्व के दौरान यह नजारा देखने को मिला। दो दर्जन से अधिक ग्रामीण यहां अपनी मन्नतपूरी करने पहुंचे थे। किसी के यहां गल देवता की मन्नत के बाद संतान हुई थी तो कोई बीमारी से ठीक हुआ था। गड्ढे में भरे अंगारों पर नंगे पैर चले धुलेंडी पर पेटलावद, करड़ावद, बावड़ी, करवड़, अनंतखेड़ी, टेमरिया आदि स्थानों पर गल-चूल पर्व पारंपरिक रूप से मनाया गया। ग्रामीण मन्नतधारियों ने दहकते अंगारों से भरे गड्ढे के बीच नंगे पैर गुजरते हुए अपनी मन्नत पूरी की। साथ ही अपने आराध्य भगवान को शीश झुकाया। आस्था के इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए न केवल स्थानीय बल्कि पड़ोसी रतलाम व धार जिले के ग्रामीण भी बड़ी तादाद में पहुंचे। क्या है चूल परंपरा: करीब तीन-चार फूट लंबे तथा एक फीट गहरे गड्ढ़े में दहकते हुए अंगारे रखे जाते हैं। माता के प्रकोप से बचने और अपनी मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता का स्मरण करते हुए जलती हुई आग में से निकल जाते हैं।
04 Mar, 2018
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