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धरती पर पांडवों को धर्म का प्रतीक माना जाता है। पांडवों ने अनेक कष्टों को सहन किया, इसके बावजूद धर्म के मार्ग से कभी नहीं हटे। अपने बुजुर्गों को दिए गए वचनों का उन्होंने ताउम्र पालन किया। विपत्तियों में तपकर कुंदन बने और घर, परिवार तथा समाज से ऊपर उठकर धर्म की रक्षा की। सभी पांडव धरती पर देवत्व का अंश लेकर अवतरित हुए थे, इसलिए उनके कर्मों में सदगुणों का वास था। अब बात करते हैं पांडवों के जन्म की। सबसे पहले धर्मराज युधिष्ठिर, जो धरती पर धर्म के अंश थे और धर्म की रक्षा का परचम भी उन्होंने थाम रखा था । भीमसेन वायु के अंश थे और उनके बल के चर्चे ब्रह्मांड के कोने-कोने में थे। अर्जुन स्वर्गाधिपति इंद्र के अंश थे। इसलिए अर्जुन पर इंद्र की खास कृपादृष्टी बनी हुई थी। महाभारत में लिखा है कि नकुल और सहदेव आश्विनीकुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे। अर्जुन पुत्र अभिमन्यू चंद्रमा के अंश रूप में अवतरित हुए थे। चंद्रमा ने एक बार तो अपने पुत्र वर्चा यानी अभिमन्यु को धरती पर भेजने से मना कर दिया था और कहा था कि मैं अपने प्राणप्रिय पुत्र को धरती पर भेजना नहीं चाहता हूं, परन्तु इस कार्य से पीछे हटना उचित जान नहीं पड़ता इसलिए वर्चा मनुष्य बनेगा तो सही, लेकिन धरती पर ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगा। उस वक्त चंद्रमा ने कहा था कि इंद्र के अंश से नरावतार अर्जुन होगा, जो नारायणवतार श्रीकृष्ण से मित्रता करेगा और मेरा पुत्र अर्जुन का ही पुत्र होगा। नर-नारायण के न रहने से युद्ध में यह चक्रव्यूह का भेदन करेगा और बड़े-बड़े महारथियों से युद्ध करने के बाद सायंकाल को आकर मुझसे मिलेगा। इसकी पत्नी से जो पुत्र होगा वही कुरुकुल का वंशधर होगा। सभी देवताओं ने चंद्रमा के वचनों का अनुमोदन किया। धृष्टद्युम्न अग्नि के अंशावतार थे तो एक राक्षस के अंश से शिखण्डी का जन्म हुआ था। विश्वदेवगण द्रौपदी के पांचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानिक और श्रुतसेन के रूप में पैदा हुए थे। देवादिदेव सनातन पुरुष भगवान नारायण के अंश से श्रीकृष्ण अवतीर्ण हुए। इंद्र की आज्ञानुसार, अप्सराओं के अंश से सोलह हजार स्त्रियां उत्पन्न हुई थी। राजा भीष्म की पुत्री रुक्मणी के रूप में लक्ष्मीजी और द्रुपद के यहां यज्ञकुण्ड से द्रौपदी के रूप में इन्द्राणी उत्पन्न हुई थी। कुन्ती और माद्री के रूप में सिद्धी और धृतिका का जन्म हुआ था। मतिका का जन्म राजा सुबल की पुत्री गांधारी के रूप में हुआ था।
16 Apr, 2018
आगे पढ़ऐभगवान परशुराम का विष्णु का छठा अवतार माना गया है। उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था। पौराणिक वृत्तांतों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा संपन्ना पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्ना देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाष शुक्ल तृतीया को हुआ था। उन्हें विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है क्योंकि भारतीय पौराणिकता में परशुराम क्रोध के पर्याय रहे हैं। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध स्वरूप इन्हें हैहय वंशी क्षत्रियों के साथ 21 बार युद्ध किया और उनका समूल नाश किया। अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये इन्होंने अपनी माता सहित अपने सभी भाइयों का सिर काट दिया। उन्हें पुनर्जीवित करने का वरदान भी बाद में उन्होंने अपने पिता जमदग्नि से मांगा। इन्हीं परशुराम को भगवान विष्णु के दसवें अवतार जो कि कल्कि के रूप में अवतरित होंगे का गुरु भी माना जाता है। परशुराम का उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक मिलता है। कैसे हुआ था परशुराम का जन्म कन्नौज में गाधि नाम के राजा राज्य किया करते थे। उनकी कन्या रूपगुण से संपन्ना थी जिसका नाम था सत्यवती। विवाह योग्य होने पर सत्यवती का विवाह भृगु ऋषि के पुत्र ऋचीक के साथ हुआ। विवाहोपरांत जब ऋषि भृगु ने अपनी पुत्रवधु को वरदान मांगने के लिए कहा तो सत्यवती ने अपनी माता के लिए पुत्र की कामना की। भृगु ऋषि ने दो चरु पात्र देते हुए कहा कि इन दोनों पात्रों में से एक तुम्हारे लिए है और दूसरा तुम्हारी माता के लिए जब तुम दोनों ऋतु स्नान कर लो तो पुत्र इच्छा लेकर पीपल के वृक्ष से तुम्हारी मां आलिंगन करें और तुम गूलर के वृक्ष से। तत्पश्चात अपने-अपने चरु पात्र का सावधानी से सेवन करना। तुम्हारी कामना पूर्ण होगी। सत्यवती की मां को जब पता चला कि उत्तम संतान प्राप्ति के लिए भृगु ने सत्यवती को चरु पात्र दिए हैं तो उसके मन में पाप आ गया और उसने सत्यवती के पात्र से अपना पात्र बदल दिया। समय आने पर दोनों ने उनका सेवन भी कर लिया लेकिन सेवन करते ही अपनी योगमाया से भृगु सारा मामला जान गये। इसमें सत्यवती का कोई दोष नहीं था उन्होंने सत्यवती से कहा कि हे पुत्री तुम्हारी माता ने तुमसे छल कर तुम्हारे चरु पात्र का सेवन कर लिया तुम्हारी माता वाले पात्र को तुमने ग्रहण किया। अब तुम्हारी संतान जन्म से भले ब्राह्मण हो लेकिन उसका आचरण एक क्षत्रिय जैसा होगा। वहीं तुम्हारी माता की संतान क्षत्रिय होने के पश्चात भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी। इस पर सत्यवती ने प्रार्थना करते हुए कहा कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र एक ब्राह्मण की तरह ही व्यवहार करे भले ही मेरे पौत्र में क्षत्रिय के गुण आ जायें। महर्षि भृगु ने सत्यवती की विनती स्वीकार की और सत्यवती की कोख से जन्मे सप्त ऋषियों में स्थान पाने वाले महर्षि जमदग्नि। जमदग्नि की पत्नी बनी प्रसेनजित की कन्या रेणुका। रेणुका व जमदग्नि के पांच पुत्र हुए इनमें पांचवे पुत्र थे भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम। क्यों हुआ परशुराम का जन्म वैसे तो भगवान विष्णु ने जब भी अवतार लिया है उसका उद्देश्य केवल धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश माना जाता है। लेकिन परशुराम जो कि विष्णु के अवतारों की श्रृंखला में छठे व स्वभाव में आवेशावतार माने जाते हैं भगवान विष्णु के सातवें श्री राम व आठवें श्री कृष्णावतार के समय तक उपस्थित माने जाते हैं। इतना ही नहीं इनकी गिनती तो महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन आठ अमर किरदारों में होती है जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है। कई संदर्भों में तो भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के रूप में स्वयं भगवान परशुराम के पुन: अवतरित होने की मान्यताएं प्रचलित हैं। दरअसल भगवान परशुराम श्री हरि यानि विष्णु ही नहीं बल्कि भगवान शिव और विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। शिव से उन्होंने संहार लिया और विष्णु से उन्होंने पालक के गुण प्राप्त किए। तत्कालीन क्षत्रिया राजा जो अपनी सत्ता व शक्ति के नशे में धर्म-कर्म भूल चूके थे और ऋषि मुनियों सहित पूरी मानवता के लिये खतरा पैदा हो गया था उन कार्तवीर्यार्जुन, सहस्त्रबाहु या कहें सहस्त्रार्जुन जैसे मदांध को सबक सिखाने के लिये ही परशुराम अवतरित हुए थे।
16 Apr, 2018
आगे पढ़ऐनई दिल्ली। झारखंड के धनबाद जिले का एक गांव आज भी लोगों के लिए सद्भावना की मिसाल बना हुआ है। जी हां, हम बात कर रहे हैं झारखंड के धनबाद जिले के करीब बसे गांव झरिया बस्ती की। इस गांव के करीब चालीस मुस्लिम परिवार गत चार दशकों से मंदिर में चढ़ाए जाने वाली फूलों की माला बनाने के लिए फूलों की खेती करते हैं। गांव के किसान ने बताया कि वे फूल और माला की सप्लाई झरिया बस्ती में करते हैं। फूलों को मंदिर में ले जाने के सवाल पर उन्होंने कहा, माला 5 रुपए की एक बेची जाती है। त्यौहारों के सीज़न में फूलों की मांग के मुताबिक वे मंदिर में फूल भेजने की जिम्मेदारी में हिस्सेदार बनते हैं। झरिया के काली माता मंदिर के पुजारी दयाशंकर दूबे ने कहा, गांव के लोग मंदिर में ज़रूरत के वक़्त हमेशा समय पर फूल भेजते हैं।
04 Apr, 2018
आगे पढ़ऐहिंदू धर्म में हर महीने का विशेष महत्व है। स्कंद पुराण में वैशाख मास को सभी मासों में उत्तम बताया गया है। वैशाख मास के देवता भगवान मधुसूदन हैं। पुराणों में कहा गया है कि वैशाख मास में सूर्योदय से पहले जो व्यक्ति स्नान करता है तथा व्रत रखता है, वह भगवान विष्णु को विशेष प्रिय होता है। इस बार वैशाख मास का प्रारंभ 1 अप्रैल, रविवार से हो रहा है, जो 30 अप्रैल, सोमवार तक रहेगा। वैशाख मास का महत्व स्कंद पुराण के अनुसार, महीरथ नामक राजा ने केवल वैशाख स्नान से ही वैकुण्ठधाम प्राप्त किया था। इसमें व्रती (व्रत रखने वाला) को प्रतिदिन सुबह सूर्योदय से पूर्व किसी तीर्थस्थान, सरोवर, नदी या कुएं पर जाकर स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य देते समय नीचे लिखा मंत्र बोलना चाहिए- वैशाखे मेषगे भानौ प्रात: स्नानपरायण:। अर्ध्य तेहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।। वैशाख मास में रखें इन बातों का ध्यान 1. वैशाख व्रत महात्म्य की कथा सुननी चाहिए तथा ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। 2. व्रती (व्रत करने वाला) को एक समय भोजन करना चाहिए। 3. वैशाख मास में जलदान का विशेष महत्व है। इस महीने में प्याऊ की स्थापना करवानी चाहिए। 4. पंखा, खरबूजा एवं अन्य फल, अनाज आदि का दान करना चाहिए। 5. स्कंद पुराण के अनुसार, इस महीेने में तेल लगाना, दिन में सोना, कांसे के बर्तन में भोजन करना, दो बार भोजन करना, रात में खाना आदि वर्जित माना गया है। वैशाख महीने में इस मंत्र से करें भगवान विष्णु की पूजा धर्म ग्रंथों के अनुसार, सूर्यदेव के मेष राशि में आने पर भगवान मधुसूदन के निमित्त वैशाख मास स्नान का व्रत लेना चाहिए। स्नान के बाद भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान मधुसूदन से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए- मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ। प्रात:स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव।। हे मधुसूदन। मैं मेष राशि में सूर्य के स्थित होने पर वैशाख मास में प्रात:स्नान करुंगा, आप इसे निर्विघ्न पूर्ण कीजिए। इसके बाद इस मंत्र से अर्घ्य दें- वैशाखे मेषगे भानौ प्रात:स्नानपरायण:। अर्ध्य तेहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।।
01 Apr, 2018
आगे पढ़ऐआज के समय में कोई सोच भी नहीं सकता कि मैनेजमेंट संस्थान हनुमान जी के फार्मूले का प्रयोग कर रहे हैं। उन्हें ही देख कर शॉर्ट टर्म और लांग टर्म पॉलिसी तैयार की जा रही है। उनकी लाइफ स्टाइल में इतने फंडे हैं कि मैनेजमेंट एक्सपर्ट उनसे आइडिया लेकर बिजनेस ग्रोथ बढ़ा रहे हैं। बिजनेस मैनेजमेंट से लेकर लाइफ मैनेजमेंट तक सभी में हनुमान जी की पॉलिसी को अपनाया जा रहा है। जिस तरह से उन्होंने फंडा लगाया है, उसे समझा और उपयोग भी किया जा रहा है। इसमें सबसे बड़ा फंडा क्राइसेस मैनेजमेंट का है। इन्हीं कारणों से मैनेजमेंट एक्सपर्ट भी हनुमान जी को गुरु मानते हैं।
01 Apr, 2018
आगे पढ़ऐचैत्र माह की पूर्णिमा को राम भक्त हनुमान जी की जयंती मनाई जाती है। कलियुग में हनुमान जी ही एकमात्र जीवित देवता हैं। हनुमान जी हमेशा अपने सच्चे भक्तों की मनोकामन पूरी करते हैं। हनुमान जी की कृपा से ही तुलसीदास को भगवान राम के दर्शन हुए थे। हनुमान जी के बारे में कहा जाता है जहां पर भी रामकथा होती है वह पर हनुमानजी किसी ना किसी रूप में मौजूद रहते है। तुलसी दास ने हनुमान चालीसा लिखी थी। हनुमान चालीसा का पाठ करने से मनुष्य की तमाम तरह की परेशानियां दूर हो जाती है। आर्थिक संकट को दूर करने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करने से आर्थिक चिंताएं दूर हो जाती है। हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने वाले व्यक्ति का मनोबल बढ़ जाता है। भूत पिशाच निकट नहीं आए, महावीर जब नाम सुनावे। इस दोहे का जो व्यक्ति नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसके पास भूत-पिशााच और नकारात्मक शक्तियां नहीं आती। हनुमान चालीसा के पाठ से मानसिक शांति मिलती है और मन में चल रही उधेड़ बुन से मुक्ति मिलती है जिससे व्यक्ति को अच्छी नींद आती है और जीवन में उन्नति का मौका मिलता है। नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा। इस चौपाई का जो व्यक्ति नियमित पाठ करता है वह व्यक्ति बलवान होता है। जो लोग अक्सर बीमार रहते हैं इस चौपाई का पाठ करने से रोग दूर हो जाता है। हनुमानजी की कृपा पाने के लिए छात्रों को नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। छात्र जीवन में चालीसा का पाठ करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है और शिक्षा के क्षेत्र में कामयाबी मिलती है। छात्रों को 'विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।। का नियमित पाठ करना चाहिए। अंत काल रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरिभक्त कहाई। और देवता चित्त न धरई। हनुमत् सेई सर्व सुख करई। जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का पाठ नियमित करता है उसके परम धाम जाने का रास्ता सरल हो जाता है।
31 Mar, 2018
आगे पढ़ऐअगर हनुमानजी का नाम मन से लिया जाए तो बड़े से बड़ा कष्ट भी मिनटों में दूर हो जाता है। राम भक्त और भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार की विधिवत उपासना करने से सभी तरह की बाधाओं का नाश होता है। 31 मार्च को हनुमान जयंती है। हनुमान जयंती के दिन अपनी राशि अनुसार मंत्रों का जप करने से सभी तरह की मनोकानाएं पूरी हो सकती है। मेष, वृष और मिथुन राशि वाले हनुमान जयंती के मौके पर ऊं सर्वदुख हराय नम: का जप करें। कर्क, सिंह और कन्या राशि के लोग इस हनुमान जयंती पर ऊं परशौर्य विनाशन नम: का जप करने से सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी। तुला,वृश्चिक और धनु राशि के जातक ऊं मनोजवया नम: और ऊं लक्ष्मणप्राणदात्रे नम: का जप सफल रहेगा। मकर, कुंभ और मीन राशि के जातक इस हनुमान जयंती पर ऊं सर्वग्रह विनाशी नम: का जप करना शुभ रहेगा।
31 Mar, 2018
आगे पढ़ऐहमारे धर्मशास्त्रों में आत्मज्ञान की साधना के लिए तीन गुणों की अनिवार्यता बताई गई है- बल, बुद्धि और विद्या। यदि इनमें से किसी एक गुण की भी कमी हो, तो साधना का उद्देश्य सफल नहीं हो सकता है। सबसे पहले तो साधना के लिए बल जरूरी है। निर्बल व कायर व्यक्ति साधना का अधिकारी नहीं हो सकता है। दूसरे साधक में बुद्धि और विचार शक्ति होनी चाहिए। इसके बिना साधक पात्रता विकसित नहीं कर पाता है। तीसरा अनिवार्य गुण विद्या है। विद्यावान व्यक्ति ही आत्मज्ञान हासिल कर सकता है। महावीर हनुमान के जीवन में इन तीनों गुणों का अद्भुत समन्वय मिलता है। इन्हीं गुणों के बल पर भक्त शिरोमणि हनुमान जीवन की प्रत्येक कसौटी पर खरे उतरते हैं। रामकथा में हनुमानजी का चरित्र अत्यंत प्रभावशाली है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शो को मूर्त रूप देने में उन्होंने महती भूमिका निभाई थी। महावीर हनुमान के विशिष्ट चारित्रिक गुणों की यदि युवा पीढ़ी अपने जीवन में उतार ले, तो देश की युवा पीढ़ी एक सशक्त व संस्कारवान राष्ट्र का निर्माण कर सकती है। विलक्षण संवाद कौशल हनुमान जी का संवाद कौशल विलक्षण है। अशोक वाटिका में जब वे पहली बार माता सीता से रूबरू होते हैं, तो अपनी बातचीत की शैली से न सिर्फ उन्हें भयमुक्त करते हैं, बल्कि उन्हें यह भी भरोसा दिलाते हैं कि वे श्रीराम के ही दूत हैं- कपि के वचन सप्रेम सुनि, उपजा मन बिस्वास। जाना मन क्रम बचन यह, कृपासिंधु कर दास ।। (सुंदरकांड)। यह कौशल आज के युवा उनसे सीख सकते हैं। इसी तरह समुद्र लांघते वक्त देवताओं के कहने पर जब सुरसा ने उनकी परीक्षा लेनी चाही, तो उन्होंने अतिशय विनम्रता का परिचय देते हुए उस राक्षसी का भी दिल जीत लिया। कथा है कि श्री राम की मुद्रिका लेकर महावीर हनुमान जब सीता माता की खोज में लंका की ओर जाने के लिए समुद्र के ऊपर से उड़ रहे थे, तभी सर्पो की माता सुरसा उनके मार्ग में आ गई थीं। उसने कहा कि आज कई दिन बाद उसे इच्छित भोजन प्राप्त हुआ है। इस पर हनुमान जी बोले, 'मां, अभी मैं रामकाज के लिए जा रहा हूं, मुझे समय नहीं है। जब मैं अपना कार्य पूरा कर लूं तब तुम मुझे खा लेना। पर सुरसा नहीं मानी और हनुमानजी को अपना ग्रास बनाने के लिए तरह-तरह के उपक्रम करने लगी। तब हनुमान जी बोले, 'मां आप तो मुझे खाती ही नहीं है, अब इसमें मेरा क्या दोष?' सुरसा हनुमान का बुद्धि कौशल व विनम्रता देख दंग रह गई और उसने उन्हें कार्य में सफल होने का आशीर्वाद देकर विदा कर दिया। यह प्रसंग सीख देता है कि केवल सामर्थ्य से ही जीत नहीं मिलती है, विनम्रता से समस्त कार्य सुगमतापूर्वक पूर्ण किए जा सकते हैं।
31 Mar, 2018
आगे पढ़ऐचैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जंयती का उत्सव मनाया जाता है। इस बार यह अवसर आज यानि 31 मार्च 2018 को शनिवार के दिन पड़ रहा है। शनि और हनुमान का सुखद संयोग पंडित दीपक पांडे ने बताया कि इस बार हनुमान जंयती शनिवार को पड़ रही है जो कि अत्यंत शुभ संयोग है। क्योंकि इस संवत्सर में राजा सूर्य हैं और शनि मंत्री। हनुमान जी का सूर्य और शनि दोनों के साथ घनिष्ट संबंध है। सूर्य हनुमान के गुरू, श्वसुर और गुरू भाई हैं जबकि शनि उनके मित्र और सूर्य पुत्र हैं। साथ ही वायु पुराण भी कहता है कि शनि और हनुमान की घनिष्ट मित्रता है। इस वर्ष अत्यंत सुंदर योग बन रहा है कि हनुमान जी का जन्मोत्सव शनिवार के दिन, पूर्णिमा तिथि को, हस्त नक्षत्र में मनाया जायेगा। इस दिन पूजन से विशिष्ट लाभ भक्तों को प्राप्त हो सकते हैं। इन बातों पर दें विशेष ध्यान इस दिन यदि बजरंग बली के भक्त कुछ छोटी छोटी बातों का ध्यान रखेंगे तो उन्हें हनुमान जी का आर्शिवाद अवश्य मिलेगा। इन उपायों में इन तीन बातों को तो मुख्य रूप से याद रखें। पहली बात तो ये है कि हनुमान जी को चंदन और चोला चढ़ाना अत्यंत पसंद है इसलिए उन्हें लाल चोला जरूर चढ़ायें। इसके बाद दूसरे नंबर पर उन्हें मूंज का बनाया यज्ञोपवीत भी प्रिय है इसलिए इस दिन पूजा करते समय उसे भी चढ़ाना ना भूलें। इसके साथ तीसरी चीज जो सर्वाधिक प्रिय है वो है सहज उपलब्ध तुलसी दल, भक्त हनुमान जी को भोग लगाते समय तुलसी दल का प्रयोग करना कतई ना भूलें। यदि इन तीन उपायों को अपनाते हुए आप हनुमान जंयती पर राम भक्त हनुमान का पूजन करेंगे तो आपकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होगी और जीवन में भय से मुक्ति मिलने के साथ सुख शांति आयेगी।
31 Mar, 2018
आगे पढ़ऐरामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार राम नवमी के स्वयं भगवान विष्णु ने भगवान राम के रुप में अवतार लिया था। यही वजह है कि पूरे देश भर में रामनवमी बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार यह 25 मार्च को मनाया जाएगा। रामनवमी पूजा मुहूर्त : प्रात: 11:14:04 से दोपहर 13:41:03 तक अवधि: 2 घंटे 26 मिनट रामनवमी मध्याह्न समय: 12:27:33 नवमी तिथी शुरुआती: 25 मार्च 2018 को 8 बजर 2 मिनट पर नवमी तिथी समाप्ति = 26 मार्च 2018 05:54 को पूजन विधि सुबह नहा धोकर सबसे पहले लाल कपड़ा बिछाकर रामदरबार में भगवान राम की आरती करें। इसके बाद भगवान राम को पुष्प अर्पित करें। इसके बाद भगवान राम को तुलसी दल और कमल का फूल जरूर चढ़ाएं। प्रसाद के रुप में खीर अर्पित करें। इसके बाद पूजा में हुई किसी भूलचूक के लिए क्षमा याचना करें। भगवान राम की पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र आदि देकर विदा करें।
24 Mar, 2018
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