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Previousनई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज भले ही कुछ शर्तों से साथ ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इच्छा मृत्य की इजाजत दे दी लेकिन 42 साल से कोमा में रह रही अरुणा शानबाग को इसकी इजाजत नहीं मिल पाई है। आपको बता दें कि अरुणा 1973 में मुंबई के केईएम हॉस्पिटल में रेप की शिकार हुई थीं। उन्हें इच्छा या दया मृत्यु देने की मांग करती जर्नलिस्ट पिंकी वीरानी की पिटीशन सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च 2011 को ठुकरा दी थी।
आपको बता दें कि मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) हॉस्पिटल में दवाई का कुत्तों पर एक्सपेरिमेंट करने का डिपार्टमेंट था। इसमें नर्स कुत्तों को दवाई देती थीं। उन्हीं में एक थीं अरुणा शानबाग। 27 नवंबर 1973 को अरुणा ने ड्यूटी पूरी की और घर जाने से पहले कपड़े बदलने के लिए बेसमेंट में गईं। वार्ड ब्वॉय सोहनलाल पहले से वहां छिपा बैठा था। उसने अरुणा के गले में कुत्ते बांधने वाली चेन लपेटकर दबाने लगा। छूटने के लिए अरुणा ने खूब ताकत लगाई। लेकिन, गले की नसें दबने से बेहोश हो गईं। अरुणा कोमा में चली गईं और कभी ठीक नहीं हो सकीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च 2011 को अरुणा शानबाग की दया मृत्यु देने की याचिका खारिज कर दी थी। वे पूरी तरह कोमा में न होते हुए दवाई और भोजन ले रही थीं। डॉक्टरों की रिपोर्ट के आधार पर अरुणा को इच्छा मृत्यु देने की इजाजत नहीं मिली।