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Previous Nextनई दिल्ली। कर्नाटक में चुनाव तारीखों की घोषणा के साथ ही कांग्रेस और बीजेपी में आरोपो-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है। चुनाव से ऐन पहले लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक समूह का दर्जा देने की कांग्रेसी सीएम सिद्दारमैया की घोषणा के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपने इस वोटबैंक को जोड़े रहने के लिए इस समुदाय के धार्मिक नेताओं से मिल रहे हैं। इसीलिए जब कल चुनाव आयोग ने कर्नाटक चुनाव तारीखों की घोषणा की तो उस वक्त अमित शाह कर्नाटक में ही थे। लिंगायत समुदाय को बीजेपी का प्रमुख वोटबैंक माना जाता है। इसी के दम पर एक दशक पहले कर्नाटक में पहली बार बीजेपी सत्ता में आई थी। कर्नाटक में बीजेपी के कद्दावर नेता बीएस येद्दियुरप्पा लिंगायत समुदाय से ही ताल्लुक रखते हैं। बीजेपी ने इस बार भी उनको सीएम चेहरा घोषित कर दिया है। ऐसे में दोनों पक्षों के बीच चुनावी जंग का ऐलान हो गया है। गुजरात के बाद यह इस साल का सबसे पहला चुनावी महासमर होगा। इसके बाद साल के आखिर में राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं और उसके बाद 2019 में आम चुनाव हैं। लिहाजा राजनीतिक विश्लेषकों की राय में चुनावी मोड में बढ़त लेने के लिए दोनों दलों के लिए यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है।
आपको बता दें कि 2014 के बाद से कांग्रेस लगातार हार रही है। पंजाब जैसी एकाध चुनावी सफलता को छोड़कर अधिकांशतया उसको हार का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब, कर्नाटक और नॉर्थ-ईस्ट के दो राज्यों में फिलहाल उसकी सरकारें बची हैं। ऐसे में कर्नाटक 2019 के चुनावी परिदृश्य के लिहाज से कांग्रेस के लिए अंतिम बड़ा किला है। इन परिस्थितियों में यदि कांग्रेस, कर्नाटक में हार जाती है तो 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष की तरफ से राहुल गांधी नेता होंगे? यह सवाल इसलिए अचानक खड़ा हो गया है क्योंकि लगातार हार के बाद कमजोर कांग्रेस किस आधार पर विपक्षी एकता की धुरी बनेगी? किस आधार पर क्षेत्रीय क्षत्रप कांग्रेस और राहुल गांधी को अपना नेता मानकर उनके साथ गठबंधन करना चाहेंगे? जबकि वह यह जानते होंगे कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार हार रही है? सियासत के लिहाज से सबसे अहम यूपी में सपा-बसपा के संभावित गठबंधन के बाद कांग्रेस की भूमिका क्या रह जाएगी?