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Previousगोल्डकोस्ट। बबीता कुमारी को इस बात का ग़म तो था ही कि वो यहां स्वर्ण पदक नहीं जीत पाईं, इस बात का ग़म ज़्यादा था कि पहली बार उनको लड़ते देखने विदेश आने के बावजूद उनके पिता महावीर सिंह फोगाट करारा स्टेडियम में नहीं घुस पाए। और तो और वो टीवी पर भी उन्हें लड़ते हुए नहीं देख पाए।
गोल्डकोस्ट में हर खिलाड़ी को अपने परिजनों के लिए दो टिकट दिए गए हैं, लेकिन बबीता को वो टिकट नहीं मिल पाए। जब उन्होंने शेफ़ डे मिशन विक्रम सिसोदिया से शिक़ायत की तो उन्होंने बताया कि पहलवानों के सारे टिकट उनके कोच राजीव तोमर को दिए जा चुके हैं। उन्होंने ख़ुद अपने हाथों से पाँच टिकट तोमर को दिए हैं। तोमर से जब बबीता ने टिकट मांगा तो उनके पास कोई टिकट उपलब्ध नहीं था। महावीर सिंह फोगाट भारत में ख़ुद एक बड़े स्टार हैं, क्योंकि उन्होंने ही फोगाट बहनों को ट्रेनिंग देकर नामी पहलवान बनाया, लेकिन शायद भारतीय कुश्ती अधिकारी उनके इतने बड़े फ़ैन नहीं हैं। यहाँ कई खेल स्टार्स के माता पिता को भारतीय ओलंपिक संघ की तरफ़ से 'एक्रेडिटेशन' तक दिए गए हैं, लेकिन बबीता इस बात से दुखी थीं कि इतनी दूर आने के बावजूद उनके पिता को स्टेडियम के अंदर तक प्रवेश नहीं मिल पाया। आख़िर में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने उनकी मदद की और किसी तरह उन्हें एक टिकट दे दिया। लेकिन वो जब तक स्टेडियम के अंदर पहुँच पाते, बबीता का फ़ाइनल मैच समाप्त हो चुका था।